Thursday, 25 July 2013

साँस लेना भी कैसी आदत है

साँस लेना भी कैसी आदत है
जीये जाना भी क्या रवायत है
कोई आहट नहीं बदन में कहीं
कोई साया नहीं है आँखों में
पाँव बेहिस हैं, चलते जाते हैं
इक सफ़र है जो बहता रहता है
कितने बरसों से, कितनी सदियों से
जिये जाते हैं, जिये जाते हैं
आदतें भी अजीब होती हैं

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