कैसे सपना उतरे आंखो में
जब नींद ही किरचें बोती है
जब नींद ही किरचें बोती है
जीवन फूलों की सेज नहीं
कांटो की कठिन चुनौती है
कांटो की कठिन चुनौती है
तम की खातिर पास मेरे
मुठ्ठी भर बस ज्योती है
मुठ्ठी भर बस ज्योती है
तार तार तर दामन यूं ही
बरखा भी क्यूं भिगोती है
बरखा भी क्यूं भिगोती है
जहाँ कहीं से गुज़रुंगा मैं
वो खड़ी वहीं पर होती है
वो खड़ी वहीं पर होती है
जिसे देख के मैं लिखता हूँ
पिए चांदनी वो सोती है
पिए चांदनी वो सोती है
ReplyDeleteजीवन फूलों की सेज नहीं
कांटो की कठिन चुनौती है
तम की खातिर पास मेरे
मुठ्ठी भर बस ज्योती है
तार तार तर दामन यूं ही
बरखा भी क्यूं भिगोती है
बहुत खूब !
बहुत बढ़िया
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