Thursday, 25 July 2013

जाने कैसा तेरा शहर है

जाने कैसा तेरा शहर है ।

कुछ कहने में लगता डर है ।।

गैरों से अब कैसा पर्दा

अपनों की ही अब बुरी नजर है.....

तेरे दर से मौत है बंटती

या खुदा ये कैसा मंजद है........

मुझको इतना दूर न समझो

आपका दिल ही मेरा घर है........

सांस भी लूँ तो दम है घुटता

फैला हवाओं में ये कैसा जहर है.......

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